बूढ़े समंदर में घुलती नदिया की जवानी ................ संजय शौर्य

उस पानी को तरसता ये पानी ।
बूढ़े समंदर में घुलती नदिया की जवानी ।।
सितम ये कुदरत का है
या हम पर है रब की मेहरबानी।
मिची मिची आखों में सपने विशाल
कहते हैं मेरे होने की कहानी ।।
ख्वाबों के गुच्छे की  एक चाबी बनकर
तुम खोलती हो यादों की कोठरी पुरानी ..
उस पानी को तरसता ये पानी ।
बूढ़े समंदर में घुलती नदिया की जवानी ।।

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