मेघ से बोलो - संजय "शौर्य"

मेघ से बोलो
ज्यादा न बोले
बरस पड़े चुप से
होले होले
मां से बोलो 
कढ़ाई चढ़ाये
चा के साथ
पकोड़ी बनाये
छाते की डंडी
टूटी हुई है, कोई
जाके बनवा लाये
मेघ को बोलो
गरजता तू ज्यादा, नहीं
बरसा तो क्या होगा फायदा ।
वो देखो कैसे भीगते हैं
गिर गिर के संभलना सीखते हैं
बारिश की बूंदें ठंडी ठंडी
पापा ने निकाली पहाड़ी बंडी
टोप ऐसा
मैंने भी पहना है
मुझ को घर में नहीं रहना है .... 


(ब्लॉग पर मेरी पहली बाल कविता) 

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