आज फिर गुजरी तन्हा शाम और उसने इजहार न किया...

आज फिर गुजरी तन्हा शाम और उसने इजहार न किया
छोड़ आए हैं जबसे दिल उनके पहलू में हम
हमारी किसी सांस ने भी हमारा एतबार न किया ....
आज फिर गुजरी तन्हा शाम और उसने इजहार न किया
वो कौन सी है शाख, खिल के जिसपे मुरझाए न कोई...
बेपरवाह हो गर मोहहब्ब्त तो दिल लगाए न कोई ...
उसने हामी भर के भी टाल दिया और हमने इंकार न किया ...
आज फिर गुजरी तन्हा शाम और उसने इजहार न किया...
दो दिलों का मेल है और सात जन्म का साथ
फिर एक मोहहब्ब्त ने पढ़ाया हमे ऐसा पाठ
खैर कुछ तो
सीखा वक्त हमने यू ही जाया और बेकार न किया
आज फिर गुजरी तन्हा शाम और
उसने इजहार न किया...
#संजय “शौर्य”
30 जून 2017
Comments
Post a Comment