वो शेर जिन्हें तुम अल्फाजों के तानेबाने से बांध कर अर्ज करते फिरते हो,,वो मेरे दिमागी अभयारण्य में छुट्टे घुमा करते हैं - संजय "शौर्य"।।
गालिब बनना छोड़ दे- संजय शौर्य
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किसके कान खुले हैं तेरी यहाँ सुनने को तू अब यूं हर किसी की सुनना छोड़ दे बहाने बना के रूठ जाएगी हंसी, तेरे लबों पर किसी को न भाएगी जिसके लिए लिखता है अलफाज इतने बटोरते भी नहीं वो खत तेरे बिखरे हैं जितने, टूट जाएगा तू भी बिखर के यूं तनना छोड़ दे दिल मेरे तू गालिब बनना छोड़ दे ..............
तेरी मेरी एक चाय इन्कार को इकरार में नफ़रत को प्यार में जिन्दगी को खुमार में बदलने का एक बहाना है... आज हमरी तरफ़ से कल तुमरी तरफ़ से... ब्रान्ड कोइ भी हो बस पिते जाना है... तेरी मेर...
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