तासीर लकीरों की

कितनी खूब हैं तासीर लकीरों की ।
नक्शे पे राहें और चेहरे पे झुर्रियाँ बन जाती हैं।
आसमां पे रंगीनियत और जमीं पर सरहदों सी दूरियां बन जाती हैं ।
कितनी खूब हैं तासीर लकीरों की ।
कागजों पर कविता गजल और हाथों पर तक़दीर बन जाती हैं ।
बेपरवाह सी लकीरें भी यहाँ किसी न किसी की तस्वीर बन जाती हैं ।।
कितनी खूब हैं तासीर लकीरों की ।। संजय **

Comments

Popular posts from this blog

तेरी मेरी एक चाय