जागता आकाश-- संजय शौर्य

जागता आकाश है ..
निश्क्त और निर्वास है ...
कंठ में खामोशीयों का धूल भरा गुबार है , 
तप्ति राहो में चला वो अविचल है निराश है 
कंटकों से भरी हैं अब वो क्यारियाँ 
जड़ों में उनकी अब तलक बसंत का आभास है
रश्मियो के गर्भ में छिपा सृजन और विनाश है
जागता आकाश है
निश्क्त और निर्वास है ...



Comments

Popular posts from this blog

क्या ये मेरा देश है ?

Ishq ka ilaaj

यादों में ...