वो शेर जिन्हें तुम अल्फाजों के तानेबाने से बांध कर अर्ज करते फिरते हो,,वो मेरे दिमागी अभयारण्य में छुट्टे घुमा करते हैं - संजय "शौर्य"।।
जागता आकाश-- संजय शौर्य
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जागता आकाश है .. निश्क्त और निर्वास है ... कंठ में खामोशीयों का धूल भरा गुबार है , तप्ति राहो में चला वो अविचल है निराश है कंटकों से भरी हैं अब वो क्यारियाँ जड़ों में उनकी अब तलक बसंत का आभास है रश्मियो के गर्भ में छिपा सृजन और विनाश है जागता आकाश है निश्क्त और निर्वास है ...
तेरी मेरी एक चाय इन्कार को इकरार में नफ़रत को प्यार में जिन्दगी को खुमार में बदलने का एक बहाना है... आज हमरी तरफ़ से कल तुमरी तरफ़ से... ब्रान्ड कोइ भी हो बस पिते जाना है... तेरी मेर...
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