मैं गोरैया ............. संजय कुमार


आ जाऊँ जब मैं पास तुम्हारे
और सीख जाऊँ तुम पे भरोषा करना
तब समझ जाना दोस्त के 
ये दुनिया आज भी दुनिया क्यूँ है !
बिसार के तुम अपने सारे गम
मेरे खिड़की में चहचहाने पर
ले आओ दो मुट्ठी अनाज जब
तब समझ जाना दोस्त के
आज भी इस दुनिया मे इंसान क्यूँ है !
तुम्हारे महलों से घर आँगन में
तिनके तिनके जोड़ के जब
संवार दूँ मैं अपना एक घोंसला जब
तब समझ जाना दोस्त के
आज भी ये दुनिया मेरा जहांन क्यूँ है !

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