लब्जों की खनक

मेरे लब्जों की खनक जो उनके आने पर बढ़ जाया करती थी । 
धड़कनों की जिरह जो उनके जाने से भडक जाया करती थी ।।
नींदों की सरगोशियाँ जो उन्हें सोचने से ही टूट जाया करती थी । 
अब भी बहुत कुछ है पर बचा कुछ भी नहीं उनके नाम का ।। 
वो खतों की स्याही भी अब धुंधली और खामोश सी है ।।
जिन्हें प्यार से छुओ तो ...... वो बोल जाया करती थी !

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