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Showing posts from June, 2015

गालिब बनना छोड़ दे- संजय शौर्य

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किसके कान खुले हैं तेरी यहाँ सुनने को  तू अब यूं हर किसी की सुनना छोड़ दे  बहाने बना के रूठ जाएगी  हंसी, तेरे लबों पर किसी को न भाएगी  जिसके लिए लिखता है अलफाज इतने  बटोरते भी नहीं वो खत तेरे बिखरे हैं जितने, टूट जाएगा तू भी बिखर के यूं तनना छोड़ दे दिल मेरे तू गालिब बनना छोड़ दे ..............

जागता आकाश-- संजय शौर्य

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जागता आकाश है .. निश्क्त और निर्वास है ... कंठ में खामोशीयों का धूल भरा गुबार है ,  तप्ति राहो में चला वो अविचल है निराश है  कंटकों से भरी हैं अब वो क्यारियाँ  जड़ों में उनकी अब तलक बसंत का आभास है रश्मियो के गर्भ में छिपा सृजन और विनाश है जागता आकाश है निश्क्त और निर्वास है ...

तेरा नाम शायरी है

आफ़ताब -ए- इश्क देखने की जो तमन्ना हो, मेरी आँखों में झांक खुद की तस्वीर देख लेना ।। जो गुर्बत किसी के नसीब की देखना चाहो, मेरे हाथों में अपने नाम की धुंधली सी लकीर देख लेना --संजय 

मैं गोरैया ............. संजय कुमार

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आ जाऊँ जब मैं पास तुम्हारे और सीख जाऊँ तुम पे भरोषा करना तब समझ जाना दोस्त के  ये दुनिया आज भी दुनिया क्यूँ है ! बिसार के तुम अपने सारे गम मेरे खिड़की में चहचहाने पर ले आओ दो मुट्ठी अनाज जब तब समझ जाना दोस्त के आज भी इस दुनिया मे इंसान क्यूँ है ! तुम्हारे महलों से घर आँगन में तिनके तिनके जोड़ के जब संवार दूँ मैं अपना एक घोंसला जब तब समझ जाना दोस्त के आज भी ये दुनिया मेरा जहांन क्यूँ है !

वो क्या जाने दर्द - संजय शौर्य

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अयाशियों, झूठी यारियों में ज़िंदगी बीनने, दिन गिनने वाले क्या जाने के बंद कमरों में घुटने का दर्द क्या होता है ? बस बसंत की रंगत महक  और मौसम की चाह रखने वाले क्या जाने के पतझड़ में शाखों से पत्ते टूटने का दर्द क्या होता है ? पल पल हर किसी को मझधार, में छोड़ देने वाले क्या जाने के भरी भीड़ में अपनों के बिछुड़ने का दर्द क्या होता है ? सिसकियों की खिल्लीयां उड़ाने वाले जज़्बात किसी के न समझने वाले क्या जाने के सुर्र्ख गालों पर आंसुओं के सूखने का दर्द क्या होता है ? मलमल की ओढ़न में बदन ढाँक के सोने वाले क्या जाने के झीने से बिछोने में सिकुड़ने का दर्द क्या होता है ? मैकदे की मदहोश रंगी रातों में जिंदगी की शामें गुजारने वाले क्या जाने के टूटे पैमानों को चुनने - बीनने का दर्द क्या होता है ? image and text is subject to copyright of blogger 

तुम जो तलाशो- संजय

तुम जो तलाशो खुद मे मुझे  आरजू दिले नादान इतनी सी है  बेखबर सी है सादगी यहाँ रौनक ए महफिल इतनी सी है  मैं जो लिखू चंद फब्तियां नाम हो तेरा गलती इतनी सी है । बदोशे खाना जिंदगी सफर में मुझमे तू तुझमें मैं, तनहाई सिफर सी है ले तू फिर तस्सवुर मे है मेरे अमावस में इस कदर रोशनी सी है । तुम जो तलाशो खुद मे मुझे आरजू दिले नादान इतनी सी है ।

लब्जों की खनक

मेरे लब्जों की खनक जो उनके आने पर बढ़ जाया करती थी ।  धड़कनों की जिरह जो उनके जाने से भडक जाया करती थी ।। नींदों की सरगोशियाँ जो उन्हें सोचने से ही टूट जाया करती थी ।  अब भी बहुत कुछ है पर बचा कुछ भी नहीं उनके नाम का ।।  वो खतों की स्याही भी अब धुंधली और खामोश सी है ।। जिन्हें प्यार से छुओ तो ...... वो बोल जाया करती थी !

आईपीएल की फटाफटी दुनिया

कविता की चंद पंक्तियाँ जो हाल में आईपीएल नाम की क्रिकेटी मंडी में हुई घटनाओं पर लिखी गयी है । फटाफटी रनों का एक गेल है दुनिया कितने अजीब रंगों का खेल है दुनिया बेखौफ सी बेमेल है दुनिया सितारों की रौनक है पल पल ढलती रात में सूरज की दस्तक है दुनिया बेबस से कुछ चेहरे हैं भागते अंधी दौड़ में कुछ नामी नकाबपोश बिकते यहाँ करोड़ में बिखरते बनते रिश्तों का गठजोड़ है दुनिया हर दौर हर मौसम कुछ और है दुनिया नाम में है संत और श्री से लब्ज मगर बेमानी की धड़कती नब्ज है दुनिया ।। अखाड़ों से रामायण तक दारा ने जो नाम कमाया बिग बॉस के बिन्दु ने उसे कहाँ कहाँ डूबाया शराफत के बदनाम नामों से पहचानी जाती है दुनिया रुसूख़ वालों की बुजदिल गुलाम है मंडी में यहाँ हर फन नीलाम है दौलत-ए-शबाब की लगाम है दुनिया फटाफटी रनों का एक गेल है दुनिया कितने अजीब रंगों का खेल है दुनिया कितने अजीब रंगों का खेल है दुनिया ।। poem by Sanjay Kumar

तासीर लकीरों की

कितनी खूब हैं तासीर लकीरों की । नक्शे पे राहें और चेहरे पे झुर्रियाँ बन जाती हैं। आसमां पे रंगीनियत और जमीं पर सरहदों सी दूरियां बन जाती हैं । कितनी खूब हैं तासीर लकीरों की । कागजों पर कविता गजल और हाथों पर तक़दीर बन जाती हैं । बेपरवाह सी लकीरें भी यहाँ किसी न किसी की तस्वीर बन जाती हैं ।। कितनी खूब हैं तासीर लकीरों की ।। संजय **

इस देश में -------संजय शौर्य

किसकी सुनिए किसको कुछ कहिये इस देश में होंठ सिल सब सहते रहिये इस देश में । संत भगवा ओढ़ कर रहे  व्यभिचार इस देश में  गुंडे चुनावों में देते हैं इश्तेहार इस देश में ।             किसकी सुनिए किसको कुछ कहिये इस देश में....... जिसको होना हो सूली पर, वो मांग रहा अनुदान इस देश में । देश का दुश्मन ही बन जाता है खास मेहमान इस देश में ।                         बन कर शांत गंगा बहते रहिये इस देश में                         किसकी सुनिए किसको कुछ कहिये इस देश में । योजनायें हैं  कागजी और कलमें हैं खंजर इस देश में । कहीं कंठ सूखा है और खेत हैं बंजर इस देश में...                 किसकी सुनिये किसे कुछ कहिये इस देश में....... किसान है...