वो शेर जिन्हें तुम अल्फाजों के तानेबाने से बांध कर अर्ज करते फिरते हो,,वो मेरे दिमागी अभयारण्य में छुट्टे घुमा करते हैं - संजय "शौर्य"।।
रुखसत
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कायनात हाथों की लकीरों की मोहताज न होती
दिल से चाह रखो तो किस्मत कभी लाचार न होती
तेरी दस्तक से ही बदल गए मेरे हालात मेरे हमनवां
जो कुछ देर थम गये होते तो जिंदगी यूँ बेजार न होती
तेरी मेरी एक चाय इन्कार को इकरार में नफ़रत को प्यार में जिन्दगी को खुमार में बदलने का एक बहाना है... आज हमरी तरफ़ से कल तुमरी तरफ़ से... ब्रान्ड कोइ भी हो बस पिते जाना है... तेरी मेर...
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