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सफर

  विजयी श्री जो कदम चूमे इठलाना नहीं गरुर मत करना बस सोचना आसमा अभी आगे और भी है और फिर फिर से तैयार होना इससे भी बड़े आस मा पे अपना हक़ पाने को , रो लेना गर तुम इस बार विजयी नहीं हुए और फिर .... फिर से तैयार होना अगली लड़ाई के लिए पहले से लाख गुना उत्साह और जुनून के साथ ... याद रखो कारवां का अपना मजा है रास्ते की मुश्किले जो अनुभव देती हैं वो मंज़िलें कभी नहीं दे सकती .... और जीवन हर दिन के नए अनुभव से सीख कर जीते जाना है उस ख्वाब की खातिर जो अभी तक तुमने पाया नहीं या जो तुमने अभी तक देखा ही नहीं ....   संजय शौर्य 

मेरी सीधी सी कहानी के वो टेड़े मेढ़े पात्र

  मेरी सीधी सी कहानी के वो टेड़े मेढ़े पात्र भूले नहीं भूलते वो दिन वो रात वो शामे तन्हा सी और सुबह जिनके खवाबों से होती थी आबाद रिश्ते थे प्यार था वक़्त था और छोटी छोटी सी मुट्ठी में बड़ी बड़ी सी थी सौगात   बेकार वो जवानी जिसका न हीं बचपन आबाद मेरी सीधी सी कहानी के वो टेड़े मेढ़े पात्र.... समझने को जिन्हें उम्र फिसली रेत सी बताने को जिन्हें लब्ज मिले नहीं सँजोने को इन्हें बस बची हैं सासें ही मात्र मेरी सीधी सी कहानी के वो टेड़े मेढ़े पात्र....

वो कहाँ हैं ?

  वो कहाँ हैं ? जो लिखे थे बहुत सोचकर ढेर सारे लफ्ज मिलते नहीं हैं किसी पन्ने पर वो  कहाँ है ? मिल के बिचड़े थे बहुत सोच कर के फिर मिलेंगे मिलते नहीं हैं किसी मोड़ पर वो कहाँ हैं ? रुकना कहकर आना ही भूले जो तन्हाइयों में भी मिलते नहीं हैं वो कहाँ हैं ? मिले तो कहना हमने उन्हें अब ढूँढना फितरत बना लिया वो यहीं हैं मुझमें कहीं हैं ।

तेरे बगैर- संजय शौर्य

  आते जाते हर शख्स में तुझे ढूँढ ती हैं बेशर्म हो चली हैं शामें तेरे बगैर नफे नुकसान का होश किसे था हम खुद को दिये बेच यहाँ तेरे बगैर नाजायज सी चलती हैं सासें मुझमें हमारा दिल भी हमारा न रहा तेरे बगैर 

यादों में ...

हमने जिंदा रहने के बहाने ढूंढे  उसने अपनी खिदमत में नजराने ढूंढे  वक्त और पानी मुठ्ठी में कैद नहीं होता हमने हथेलियों की बारीक नगरी में  कुछ उसके फसाने ढूंढे कुछ पुराने ज़माने ढूंढे  संजय शौर्य 

क्या ये मेरा देश है ?

अंतर्मन में द्वेष है  पल पल बदले भेष है  भेड़िया बोले मेष है क्या ये मेरा देश है? कराहती है धरा अंबर गुबार से भरा पर्वतराज खुला केश है क्या ये मेरा देश है?  इस देश में दो देश हैं एक में लंबी कतारें एक में महकती बहारें अहं पर किसी के ये ठेस है हां ये मेरा देश है ..

मुर्दा ज़िन्दगी

गांव से शहर लाया  अब लाश शहर से गांव जाएगी ज़िन्दगी मुर्दा है  इधर उधर भटकेगी बीत जाएगी  तिलमिला जाते हैं हुजूर बिस्मिल्लाह के नाम पर  ये जात तो जात है कहां जाएगी ? दरख़्त पर उनके बसंत  पत्तियां सोने की हैं  हमरी दमड़ी ढाक की  सुट्टों में खर्ची जाएगी ।  ©संजय "शौर्य"  21 अप्रैल 2021 

सुपुर्दगी

रुकती कहां है लहरें साहिल पर टकराने के बाद  ठहरती कहां है नजरें उनसे मिल जाने ने बाद  ये प्यार ये अदब और ये सुपुर्दगी किसी में ना दिखी उनके मिल जाने के बाद ।। #SanjayShaurya

तलाश ए मोहब्बत

उसने मुझे मयखाने में ढूंढा  पर्दानशी हर तैखाने में ढूंढा  गिरफ्त थे हम उसी के अंशुमन में उसने हमें सरे ज़माने में ढूंढा  सोचते रहे बस हम ही करीब ए दिल उसके और उसने हमें अपने हर नए दीवाने में ढूंढा  बरकत थी उसकी हर हंसी हमारी  इश्क़ को उसने बस खजाने में ढूंढा । #बज़्म #shayari SanjayShaurya 

तजुर्बा ए रोशनी

तजुर्बा ए रोशनी में इत्तेफाक देखा  गुलों के बीच मुरझाया हमराज देखा  कहकशां था बीती रात जिस घर में  सुबह गमों का उठता वहां सैलाब देखा  मोहब्बत को कैसे मान लूं रहमत तेरी हर मोड़ पर रुसवाई का सजता बाजार देखा । #sanjay