यादों में ...
हमने जिंदा रहने के बहाने ढूंढे उसने अपनी खिदमत में नजराने ढूंढे वक्त और पानी मुठ्ठी में कैद नहीं होता हमने हथेलियों की बारीक नगरी में कुछ उसके फसाने ढूंढे कुछ पुराने ज़माने ढूंढे संजय शौर्य
वो शेर जिन्हें तुम अल्फाजों के तानेबाने से बांध कर अर्ज करते फिरते हो,,वो मेरे दिमागी अभयारण्य में छुट्टे घुमा करते हैं - संजय "शौर्य"।।