मुर्दा ज़िन्दगी

गांव से शहर लाया 
अब लाश शहर से गांव जाएगी
ज़िन्दगी मुर्दा है 
इधर उधर भटकेगी बीत जाएगी 
तिलमिला जाते हैं हुजूर
बिस्मिल्लाह के नाम पर 
ये जात तो जात है कहां जाएगी ?
दरख़्त पर उनके बसंत 
पत्तियां सोने की हैं 
हमरी दमड़ी ढाक की 
सुट्टों में खर्ची जाएगी । 

©संजय "शौर्य" 

21 अप्रैल 2021 

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