वो शेर जिन्हें तुम अल्फाजों के तानेबाने से बांध कर अर्ज करते फिरते हो,,वो मेरे दिमागी अभयारण्य में छुट्टे घुमा करते हैं - संजय "शौर्य"।।
तू आकाश जैसी शख्सियत
Get link
Facebook
X
Pinterest
Email
Other Apps
तू आकाश जैसी शख्सियत
मेरा वस्ल बस कदमों की जमी
तेरा तिलिस्म फ़ना कर दे सबको
मेरी मल्खियत बस पलको की नमी
लिहाफ़ ओढ़े यादें आती हैं..
और उसके हर हल्फ़ में तेरी ही कमी....
अंतर्मन में द्वेष है पल पल बदले भेष है भेड़िया बोले मेष है क्या ये मेरा देश है? कराहती है धरा अंबर गुबार से भरा पर्वतराज खुला केश है क्या ये मेरा देश है? इस देश में दो देश हैं एक में लंबी कतारें एक में महकती बहारें अहं पर किसी के ये ठेस है हां ये मेरा देश है ..
मारे मारे फिरते हैं इस इश्क़ का इलाज नहीं मिलता तेरे सिवा कोई हक़ीम हमें परवरदिगार नहीं मिलता रोशनी है मोहताज चिंगारी की तल्खी है क्यों बंदिश है क्यों वफ़ा को नामुराद बस वफा...
हमने जिंदा रहने के बहाने ढूंढे उसने अपनी खिदमत में नजराने ढूंढे वक्त और पानी मुठ्ठी में कैद नहीं होता हमने हथेलियों की बारीक नगरी में कुछ उसके फसाने ढूंढे कुछ पुराने ज़माने ढूंढे संजय शौर्य
Comments
Post a Comment