कितना और चाहूँ के दिल पिघल जाए
और किसे दिल की बात समझाये
के खाना बदोश को होश आ जाये
उस नुक्क्ड पे दिल हम छोड़ आये
जिसे भी मिले दर पे मेरे ले आये...
कितना और चाहूँ के दिल पिघल जाए ..
रुतबा ए जिगर तेरा सलामत रहे ..
हौसला कुछ और जवा होके कुछ हम कर पाये..
मुक्कदर है तेरा मिलना या
इसे इतेफ़ाक़ कह दू ...
रब करे इस इश्क़ ए इबादत
पे रेहमत ए बरकत आये
संजय शौर्य
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