रुखसत
कायनात हाथों की लकीरों की मोहताज न होती दिल से चाह रखो तो किस्मत कभी लाचार न होती तेरी दस्तक से ही बदल गए मेरे हालात मेरे हमनवां जो कुछ देर थम गये होते तो जिंदगी यूँ बेजार न हो...
वो शेर जिन्हें तुम अल्फाजों के तानेबाने से बांध कर अर्ज करते फिरते हो,,वो मेरे दिमागी अभयारण्य में छुट्टे घुमा करते हैं - संजय "शौर्य"।।