तू आकाश जैसी शख्सियत
तू आकाश जैसी शख्सियत मेरा वस्ल बस कदमों की जमी तेरा तिलिस्म फ़ना कर दे सबको मेरी मल्खियत बस पलको की नमी लिहाफ़ ओढ़े यादें आती हैं.. और उसके हर हल्फ़ में तेरी ही कमी....
वो शेर जिन्हें तुम अल्फाजों के तानेबाने से बांध कर अर्ज करते फिरते हो,,वो मेरे दिमागी अभयारण्य में छुट्टे घुमा करते हैं - संजय "शौर्य"।।