गांव और शहर
गांव में अपनापन
शहरों में अकेलापन
गांव में शांति का शोर
शहरों में हुजूम चहुं ओर
गांव में ठंडी बयार
शहरों में गर्मी अपार
गांव की निर्मल काया
शहरों में बिना रूह माया
गांव में निश्चल मन है
शहरों में निर्वस्त्र तन है
गांव में मिट्टी की महक
शहरों में भट्टी और देहक
गांव में जिव्हा को आराम है
शहरों में पेट हर हाल में हराम है
बस
गांव में हाथ खाली हैं
जमींदारी के पास गिरवी
हर खेत हर नाली है
गांव में रोशनी नहीं
गांव में रह गई बस झुर्रियां है
शहर जाता एक एक भातुर है
ये गांव भी वो गांव भी क्यूं
बस शहर बनने को आतुर है
ये गांव भी वो गांव भी क्यूं
बस शहर बनने को आतुर है
©SanjayShaurya
10May2020
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