जम्हुरियत
सुर्ख गालों पे तेरी रेहमत की लाली नजर आती है.... लिखे हैं जज्बात जिस्म की स्याही से उन्हें हर हर्फ़ में काली नजर आती है ... ये बला चालाक है सफ़ेदपोश में जो सबको सीधी साधी और भोली नजर...
वो शेर जिन्हें तुम अल्फाजों के तानेबाने से बांध कर अर्ज करते फिरते हो,,वो मेरे दिमागी अभयारण्य में छुट्टे घुमा करते हैं - संजय "शौर्य"।।